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Wo Chand Hai | Desh Kumar |

वो चांद है उसकी ख्वाइश लाखों करते हैं मुझपे जितनी चांदनी गिरती है मुझे अपने हिस्से की वो चांदनी अच्छी लगती है, उसकी अलमारी में रखी दर्जनों ड्रेसेस रोज़ एक ही तमन्ना करती हैं कि आज Dress Select करते वक़्त उसकी उंगली मूझपे ही आकर रुके ताकि वो सारा दिन उसके बदन से लिपट कर उसकी खुशबू को चुरा सकें, उसकी Heels उसकी चप्पलों से अक्सर ऐसी बातें करती हैं कि काश मैं उसके पैरों से तब तक गले लगी रहूं जबतक टूट ना जाऊं, खुद पसंदगी के कारण उसके बाल बार बार उसके माथे पे गिरते हैं बस इसी ख्वाहिश में कि उसका हाथ उन्हें छूकर बार बार कान पर टिकाता रहे, उसकी पानी की बोतल पर बने लिपस्टिक के निशान हर घूंट में ये कोशिश करते हैं कि फिर से उसके होंठो पे चिपक जाएं, ऑफिस की दीवारें भी सारा दिन इसी जत्थोजहत में लगी रहती हैं कि उसकी सांसों से निकली गरमी को ज्यादा से ज्यादा खुद में समा सकें ताकि छुट्टी के बाद ये गरमी उन्हें उसकी मौजूदगी का अहसास दिलाती रहे और बस किसी तरह रात कट जाए, कल उसके ऑफिस से जाने के बाद जब मैं उसकी कुर्सी पे जाकर बैठा तो सामने उसका Mouse और Keyboard इस बात पर जीने